सागर की तरह है प्रेमचंद्र का कथा साहित्य – प्रोफेसर रामकिशोर शर्मा।
टीएन शर्मा की रिपोर्ट
प्रयागराज। उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के मानविकी विद्या शाखा के तत्वावधान में बुधवार को वर्तमान संदर्भ में प्रेमचंद्र के कथा साहित्य की प्रासंगिकता विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन सरस्वती परिसर स्थित लोकमान्य तिलक शास्त्रार्थ सभागार में किया गया।
उक्त संगोष्ठी के मुख्य वक्ता प्रोफेसर रामकिशोर शर्मा, पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने कहा कि प्रेमचन्द का कथा साहित्य सागर की तरह है। समाज का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जिसे उन्होंने स्पर्श न किया हो। उनकी रचनाओं में दहेज प्रथा, बेमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छुआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री पुरुष समानता आदि उस दौर की प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। प्रोफ़ेसर शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद्र ने अपनी कहानियों उपन्यासों में सामाजिक व्यवस्था का बखूबी चित्रण किया है। वह अंजना व्यंजनात्मक रूप से समस्या को उभारकर सामने रखते थे। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद प्रगतिशील थे और अपने समय के यथार्थ की गहराई को पहचानते थे।
अध्यक्षता करते हुए उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास में राष्ट्र की परिकल्पना झलकती है और हमें उसका अनुसरण करना चाहिए। प्रेमचंद्र के साहित्य का सबको अध्ययन करना चाहिए। उनकी रचनाओं को जब समाजशास्त्री, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री एवं समाज सुधारक पढ़ते हैं, चिंतन करते हैं तो उसका अलग पर्याय होता है जो कि समाज हित में होता है।
कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि प्रेमचन्द्र की रचनाएं कालजयी हैं। वे जनता की आवाज को अपनी रचनाओं में प्रमुखता से वयक्त करते थे। उनका उपन्यास सोजे वतन राष्ट्रीयता से ओतप्रोत था।
संगोष्ठी का संचालन आयोजन सचिव अनुपम तथा धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव कर्नल विनय कुमार ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के निदेशक, शिक्षक, कर्मचारियों छात्र-छात्राएं आदि उपस्थित रहे।