हजारों ग्रामीण महिलाओं की जीविका का जरिया बन रहा है प्रयागराज का महाकुम्भ, शिविरों में रहती है उपलों की विशेष मांग।

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त्रिभुवन नाथ शर्मा की रिपोर्ट

महाकुंभ नगर। त्रिवेणी के तट पर जनवरी 2025 में आयोजित होने जा रहे हैं महाकुंभ को दिव्य भव्य सुरक्षित बनाने में योगी सरकार युद्ध स्तर पर कार्य कर रहे हैं। आस्था वो अध्यात्म के यह महा समागम लाखों लोगों की जीविका का जरिया भी बन रहा है। महाकुंभ नगर के अंतर्गत आने वाले गांव की ग्रामीण महिलाओं की आजीविका बढ़ाने के महाकुंभ नगर ने नए अवसर दे दिए हैं।

15 हजार से अधिक महिलाओं के लिए बना आजीविका का जरिया

संगम किनारे 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 के मध्य आयोजित होने जा रहा महाकुंभ होटल ट्रैवल और टेंटेज फूड जैसी बड़ी इंडस्ट्री के साथ छोटे-मोटे काम करने वाले लोगों के लिए भी जीविका के अवसर प्रदान कर रहा है। महाकुंभ नगर नाम से सृजित हुए अस्थाई जिले के अंतर्गत आने वाले 67 गांव में पशुपालन से जुड़े कार्य में लगे परिवारों की 15 हजार से अधिक महिलाओं के लिए इस महाकुंभ ने जीविका का जरिया दे दिया है। गंगा व यमुना किनारे बसे कई गांव में इन दिनों ईंधन के परंपरागत रूप उपयोग का नया बाजार विकसित होने लगा है। इन गांव में नदी किनारे बड़ी तादात में उपलों की मंडी बन गई है। गांव में इन दिनों गोबर से बने उपलों को बनाने में स्थानीय महिलाएं पूरे दिन लगी हुई है।

उपलों और चूल्हा के निर्माण का मिल रहा है ऑर्डर

हेतापट्टी गांव की सावित्री का कहना है कि पिछले 1 महीने से उनके पास महाकुंभ नगर में अपने शिविर लगवाने वाली संस्थाएं उपले सप्लाई करने के ऑर्डर दे रही है। इसी गांव की सीमा सुबह से ही अपने घर की आमतौर पर खाली रहने वाली महिलाओं के साथ मिट्टी के चूल्हे तैयार करने में जुट जाती हैं। सीमा बताती है कि महाकुंभ में कल्पवास करने आने वाले श्रद्धालुओं का खाना इन्हीं चूल्हों पर तैयार होता है। इसके लिए अभी तक उनके पास 7000 मिट्टी के चूल्हे तैयार करने के ऑर्डर भी मिल चुके हैं।

शिविरों में हीटर व छोटे एलपीजी सिलेंडर के इस्तेमाल पर लगी रोक से बढ़ी मांग

मेला प्रशासन के मुताबिक महाकुंभ में 10 हजार से अधिक संस्था इस बार लगेंगे इसमें 7 लाख से अधिक कल्पवासियों को भी जगह मिलेगी। मेला क्षेत्र में बड़ी संस्थाएं और अखाड़े वैसे तो कुकिंग गैस के बड़े सिलेंडर का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि इन्हें प्रतिदिन लाखों लोगों को भोजन करवाना होता है लेकिन धर्माचार्य, साधु संतों और कल्पवासी अभी भी अपनी पुरानी व्यवस्था के अंदर ही खाना बनाते हैं। कुछ स्थानों पर आग लगने की घटनाओं में हीटर और छोटे गैस सिलेंडर का इस्तेमाल बड़ी वजह पाये जाने से मेला प्रशासन ने शिवरों में हीटर और छोटे गैस सिलेंडर के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इस नई व्यवस्था की वजह से भी अब गांव की इन महिलाओं के हाथ से बने उपलों और मिट्टी के चूल्हों की मांग बढ़ गई है। तीर्थ पुरोहित बताते हैं की तीर्थ पुरोहितों के यहां ही सबसे अधिक कल्पवासी रुकते हैं ऐसे में उनकी पहली प्राथमिकता पवित्रता व परंपरा होती है इसके लिए वह मिट्टी के चूल्हे उपले से बना भोजन ही बनाना पसंद करते हैं।

AT Samachar
Author: AT Samachar

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