इंडिया नहीं सिर्फ़ भारत की मांग सिर्फ़ ज्ञान महाकुंभ तक सीमित नहीं- डॉ. अतुल कोठारी।

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त्रिभुवन नाथ शर्मा की रिपोर्ट

प्रयागराज। ‘न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते’ अर्थात् इस दुनिया में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ नहीं है। श्रीमद्भगवद् गीता में दर्ज इस पंक्ति की सार्थकता को व्यापक रूप देने के लिए प्रयागराज के महाकुंभ में ‘शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास’ ओर से 10.01.2025 से 10.02.2025 के बीच ‘ज्ञान महाकुंभ’ का आयोजित किया गया। 7 फरवरी से 9 फरवरी के तीन दिवसीय राष्ट्रीय आयोजन की इसी कड़ी में आज तीसरे और अंतिम दिन ‘विकसित भारत और भारतीय भाषाएं’ पर राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ।

कार्यक्रम के बीज वक्तव्य में न्याय के राष्ट्रीय सचिव डॉ. अतुल कोठारी ने कहा- “ज्ञान महाकुंभ एक महामंथन के रूप में आयोजित किया गया जिससे उद्धृत अमृत दशकों तक भारत को बल प्रदान करेगा। इंडिया नहीं सिर्फ़ भारत की मांग पर हर संभव कोशिश होगी और ‘जहां चाह है, वहां राह है’। “उन्होंने आगे कहा” मुझे पूरा विश्वास है कि जल्द ही भारतीय ज्ञान परंपरा को लेकर इस कार्यक्रम की गूंज पूरे देश में सुनाई और इसका परिणाम दिखाई देगा।” डॉ. कोठारी ने न्यास से जुड़े सभी लोगों और संस्थानों को धन्यवाद देते हुए कहा – “आपने इस कार्यक्रम की परिणति को की रेखा को वर्षों तक के लिए खींच दिया। गर्व है!”

डॉ. कोठारी ने ज्ञान महाकुंभ- 2081 में पहुंचे दर्जनों विश्वविद्यालयों के कुलपति और विद्वत समाज को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा-“विद्वत समाज का ऐसा महाकुंभ का आयोजन अपने आप में अद्भुत है।”
ज्ञान महाकुम्भ-२०81 कार्यक्रम के समापन सत्र में (डॉ) वी. नारायणन, अध्यक्ष, भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संस्थान (इसरो), बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। उन्होंने अपने संबोधन में इसरो के संहर्ष तथा उपलब्धियों के बारे में बताया तथा इसरो के भविष्य की योजनाओ के बारे में अवगत कराया और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के शिक्षा के क्षेत्र में भूमिका तथा योजनाओं की सराहना की। मा. दत्तात्रेय होसबोले जी सरकार्यवाह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बत्तौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। उन्होंने न्यास के द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में शुरु किये गये प्रयासों के बारे में अवगत कराया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा अगर देश को बदलना हैं तो शिक्षा को बदलना होगा और अगर देश को आत्मनिर्भर बनना हैं तो छात्रों को आत्मनिर्भर बनाना होगा।

आज के इसी कड़ी में उतराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उपस्थित रहे और उन्होंने ने अपने संबोधन में उत्तराखंड में लागू किये गये एक समान कानून के बारे में बताया। साथ ही शिक्षा संस्कृति उत्थान द्वारा आयोजित ज्ञान महाकुम्भ की सराहना की और 2027 में होने जा रहे हरिद्वार अर्द्धकुम्भ में सहभागिता के लिए आमंत्रित किया।

एक महीने चले इस कार्यक्रम की रूपरेखा कुछ इस प्रकार रही

कार्यक्रम की शुरुआत 10 जनवरी को उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या की उपस्थिति में उद्घाटन सत्र के द्वारा हुई। तत्पश्चात विद्यार्थियों के लिए विभिन्न कक्षाओं जैसे वैदिक गणित, दैनिक योगा अभ्यास, संस्कृत कार्यशाला आदि का आयोजन हुआ। इसी कड़ी में एक फरवरी को ‘एक राष्ट्र, एक नाम- भारत’ कार्यक्रम का आगाज़ हुआ। फिर 5 और 6 फरवरी को हरित महाकुंभ का आयोजन; अंततः तीन दिन (7-9 फरवरी) चले राष्ट्रीय कार्यक्रम में निजी शैक्षिक संस्थाओं की शिक्षा में भूमिका, शासन भारतीय शिक्षा: राष्ट्रीय संकल्पना, प्रशासन की शिक्षा में भूमिका, विकसित भारत और भारतीय भाषाएं जैसे विषयों पर विचार-विमर्श हुआ, और शिक्षक एवं छात्र संगोष्ठी और महिला सम्मेलन का सकुशल आयोजन हुआ।

इन विभिन्न कार्यक्रम में राष्ट्र निर्माण के लिए विभिन्न संकल्प पत्र ‘ऊं’ ध्वनि के साथ पारित किए गए

इस कार्यक्रम में पूरब से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण तक के सभी प्रांतों ने सहभागिता की, जिसमें 100 से ज्यादा केंद्रीय और राजकीय विश्वविद्यालयों और संस्थानों के कुलपति, निदेशक, अध्यक्ष शामिल रहे। इस कार्यक्रम में 500 से ज्यादा विभिन्न प्रदेशों के शिक्षकों ने प्रतिभाग किया और अपने विचार रखे। साथ ही 5000 से ज्यादा विद्यार्थी एवं शोधार्थियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर-8 के पी. डब्ल्यू.- 801 में चल रहे इस कार्यक्रम में डॉ. रमेश भारद्वाज ने स्वागत उद्बोधन दिया और डॉ. विनोद कुमार मिश्र ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

AT Samachar
Author: AT Samachar

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