संत सियाराम बाबा का एक सौ दस वर्ष की आयु में निधन।

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दस साल खड़े रहकर की मौन तपस्या, सत्तर साल किया रामचरित मानस का पाठ

देवेन्द्र कुमार जैन की रिपोर्ट

भोपाल, मध्य प्रदेश। नर्मदा तट भट्याण से पूरे देश में धर्म व अध्यात्म की अलख जगाने वाले परम् पूज्य संत सियाराम बाबा का मोक्षदा एकादशी के दिन 110 वर्ष की आयु में देवलोकगमन हो गया। उनका जाना भारतीय ज्ञान परंपरा और संत परंपरा के एक युग का अंत है। संत सियाराम बाबा पिछले कुछ दिन से निमोनिया से पीड़ित थे। बाबा ने बुधवार मोक्षदा एकादशी पर 6:10 बजे अंतिम सांस ली। देश भर में उनके अनुयायियों में शोक की लहर है। शाम 4 बजे नर्मदा नदी किनारे भटयान आश्रम क्षेत्र में अंत्येष्टि की गई।

बताया जाता है कि सियाराम बाबा किसी से दस रुपये से ज्यादा चढ़ावा नहीं लेते थे, किसी ने यदि बीस रुपये रख दिये तो दस वापस दे देते थे, लेकिन जब अयोध्या में राम मंदिर में पैसे देने की बारी आई, तो सियाराम बाबा ने ढाई लाख रुपए दे दिए। धन के निर्मोही ओर राम के मोही थे सियाराम बाबा।संत सियाराम बाबा के अनुयायियों के अनुसार बाबा का असली नाम कोई नहीं जानता। वे 1933 से नर्मदा किनारे रहकर तपस्या कर रहे थे। दस साल तक खड़े रहकर मौन तपस्या की। वे करीब सत्तर साल से रामचरित मानस का पाठ भी कर रहे थे। अपने तप और त्याग से लोगों के हृदय में जगह बनाई।

धर्म साधना एवं मां नर्मदा की सेवा में समर्पित पूज्य बाबा जी ने असंख्य श्रद्धालुओं के जीवन को दिशा दी।पहली बार उनके मुंह से सियाराम का उच्चारण हुआ था। तभी से लोग उन्हें संत सियाराम बाबा के नाम से पुकारते हैं। मुख्य मंत्री डॉ मोहन यादव ने खरगोन जिले के ग्राम लेपा पहुंचकर दिव्य संत, परम पूज्य सियाराम बाबा जी के चरणों में श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा की आपने त्याग, तप और भक्ति की त्रिवेणी से मां नर्मदा के इस पावन तट के साथ ही संपूर्ण प्रदेश को आध्यात्मिक प्रकाश से आलोकित किया।

आपके देवलोकगमन से सनातन संस्कृति के अविरल प्रवाह में शून्यता का अनुभव हो रहा है। लोक कल्याण को आपने ईश्वर भक्ति का मार्ग बताया है, जिसे आत्मसात कर हम जन-जन के उत्थान के लिए प्रयास में सदैव समर्पित रहेंगे।

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