लेखक
by तहजीब लियाक़त
गाँव के किनारे एक छोटा सा घर था, जिसमें एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे के साथ रहता था। बूढ़े का नाम गोपालदास था और उसके बेटे का नाम रोहित। गोपालदास ने अपने जीवन की सारी खुशियाँ और उम्मीदें रोहित पर टिका दी थीं। लेकिन, समय और परिस्थितियाँ बदलते देर नहीं लगतीं।
रोहित जवान होते ही शहर की चमक-दमक में खो गया। वह गाँव की सीमाओं से बाहर निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहता था। एक दिन उसने गोपालदास से कहा, “पिताजी, मुझे शहर में नौकरी मिल गई है। मुझे वहाँ जाना होगा।”
गोपल्दास् ने भारी दिल से अपने बेटे को विदा किया। रोहित ने वादा किया कि वह जल्द ही उसे अपने साथ ले जाएगा। लेकिन समय बीतता गया और रोहित की जीवनशैली बदलती गई।
एक दिन रोहित ने गोपालदास को शहर बुलाया। गोपालदास बड़े उत्साह से शहर गया, सोचते हुए कि वह अपने बेटे के साथ नए जीवन की शुरुआत करेगा। लेकिन रोहित ने उसे शहर की एक भीड़-भाड़ वाली सड़क पर छोड़ दिया, यह कहकर कि वह जल्द ही वापस आएगा।
गोपालदास इंतजार करता रहा, लेकिन रोहित कभी नहीं लौटा। दिन, हफ्ते और फिर साल बीत गए, लेकिन गोपालदास वहीं बैठा रहा, अपने बेटे के लौटने की आस में।
गोपालदास ने उस सड़क को ही अपना घर बना लिया। वह राहगीरों से मदद मांगकर अपना गुजारा करता और हर आने-जाने वाले को देखता, उम्मीद करते हुए कि शायद रोहित लौट आए। उसकी आँखों में हमेशा एक अनकही कहानी और दिल में अनंत इंतजार था।
गोपालदास की उम्र ढलने लगी, लेकिन उसकी उम्मीद कभी नहीं मिटी। गाँव और शहर के लोग उसे उस सड़क पर हमेशा इंतजार करते हुए देखते। कई बार लोग उससे पूछते, “बाबा, आप किसका इंतजार कर रहे हैं?”
गोपालदास बस मुस्कुरा कर कहता, “मेरा बेटा आएगा, मैं जानता हूँ।”
निष्कर्ष
गोपालदास का इंतजार कभी खत्म नहीं हुआ। उसकी आँखों में वह आखिरी सांस तक अपने बेटे की उम्मीदें जिंदा रहीं। उसका अनंत इंतजार उस प्यार और विश्वास का प्रतीक था जो एक पिता अपने बच्चे के लिए रखता है।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में कुछ इंतजार कभी खत्म नहीं होते, और रिश्तों की अहमियत को कभी भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। गोपाल दास का इंतजार भले ही पूरा नहीं हुआ, लेकिन उसकी उम्मीदें और विश्वास जीवनभर के लिए एक मिसाल बन गए।