बिरहा उत्सव ने जगाई संस्कृति की नई उमंग।

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त्रिभुवन नाथ शर्मा की रिपोर्ट

Prayagraj: उत्तर मध्य क्षेत्र संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से आयोजित पांच दिवसीय बिरहा उत्सव के तीसरे दिन शुक्रवार को बारा, प्रयागराज में बिरहा कार्यक्रम का आयोजन हुआ, जिसमें लोक कलाकरों ने काव्यात्मक शैली और संगीत की अनोखी प्रस्तुति देकर ग्रामीण आंचल में सामाजिक चेतना और एकता की भावना को बढ़ावा दिया। स्थानीय कलाकारों ने एक से बढ़कर एक पारंपरिक गीत प्रस्तुत कर समां बांधा।


कुंवर बहादुर एवं दल ने ऊंचे पर्वतवा पे बसलू ममरिया, जय हो गंगा महारानी तोहार बड़ा निर्मल बा पानी तथा झूमर गीत बोले सुखदेव मुनि ज्ञानी की प्रस्तुति दी। इसके बाद मान सिंह ने देवीगीत हसंवा उड़ाके तबले आ गईली माई हो व बिरहा गीत स्वार्थ के मात-पिता स्वार्थ के बहिनिया को पेश कर श्रोताओं में सांसारिक भाव को जाग्रत किया। चन्द्रभान सिंह एवं साथी ने आफतिया सर पे भारी आ गईल मन में सोचे मुनिवर कईसे टरी विपत्तिया को प्रस्तुत किया। इसके बाद छेदी लाल एव दल ने स्वर सरगम सजावा मईया मोरी तथा मन डोले चलबे मथुरा नगरी की प्रस्तुति पर दर्शक दीर्घा में बैठे श्रोताओं ने पारंपरिक संगीत का लुत्फ उठाया। संगत कलाकारों में धर्मराज विश्वकर्मा ने हारमोनियम पर, भारत ढोलक पर, देवानंद करताल पर, अशोक कुमार ने मजीरे पर साथ दिया।

इस अवसर पर केंद्र के अधिकारी एवं कर्मचारी सहित काफी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे।

AT Samachar
Author: AT Samachar

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