डीएम और एसपी टीम की रही चुस्त दुरुस्त सुरक्षा व्यवस्था, पूरे जनपद में शांतिपूर्ण सम्पन्न हुआ मोहर्रम पर्व
चायल/कौशाम्बी। ताजिया,मेहंदी और झूले आदि के फूलों को अकीदतमंदों ने पूरे जनपद सहित चायल तहसील के थाना पिपरी क्षेत्र के सैय्यद सरावां के कर्बला में भी दफन किया।डीएम मधुसूदन हुल्गी और एसपी राजेश कुमार , एएसपी अपर पुलिस अधीक्षक के निर्देशन और एसडीएम चायल आकाश सिंह व सीओ चायल अभिषेक सिंह के पर्यवेक्षण में थानाध्यक्ष चरवा महेश सिंह, चौकी प्रभारी सैयद सरावां विपलेश सिंह टीम की चुस्त दुरुस्त सुरक्षा व्यवस्था देखने को मिलीं।
इस दौरान राजस्व विभाग की ओर से, बीडीओ चायल दिनेश सिंह, नायब तहसीलदार संजय कुमार, डीएसटीओ रमाशंकर,लेखपाल बृजेश गुप्ता आदि मौजूद रहे। शासन प्रशासन की लगातार पैनी नज़र ताजिया जुलूस पर बनी रही।मोहर्रम की दसवीं तारीख को इमाम हुसैन और उनके जांबाज साथियों को विदाई दी गई।
इमामबाड़ों से निकले ताजिया, मेहंदी और झूले आदि के फूलों को अकीदतमंदों ने कर्बला में दफन किया। अंजुमानों ने जंजीर, कमा और हाथों से मातम कर जंगे कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद अकीदत के फूल कर्बला में दफन किए गए।मोहर्रम के महीने में गांव से लेकर शहर तक ताजिए नजर आते हैं। कौशाम्बी में रविवार को अलग-अलग स्थानों से मोहर्रम की दसवीं का जुलूस निकाला गया। अलविदा अलविदा या हुसैन अलविदा की सदा पर मातम करते आंसू बहाते अजादार इमामबाड़ों पर रखे ताज़िये लेकर कर्बला पहुंचे।
सैय्यद सरावां गांव स्थित इमामबाड़े पर पहुंची वहां से सभी ताजिए कर्बला पहुंचे।यहां पर लोगों ने हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उनके साथियों की याद में मरसिए पढ़े और न्याजो नजर दिलाई। जगह- जगह जलपान की व्यवस्था की गई थी।ताजिया देखने के लिए ग्रामीण क्षेत्र के अलावा अन्य शहरों के लोग भी आए हुए थे। ढोल-नगाड़ों की थाप पर बच्चों और युवाओं ने इमाम हुसैन की शहादत को याद किया। गमगीन माहौल में ताजियों को सुपुर्द ए खाक किया गया।
ग्राम प्रधान सैय्यद सरावां असद हुसैन और मम्मू नेता ने बताया कि मोहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है। रमजान के बाद इस्लाम में मोहर्रम का खास स्थान होता है। मुस्लिम समुदाय यौम-ए-आशूरा के 10वें दिन को मोहर्रम का जुलूस निकाल कर शहादत मनाता है। उन्होंने बताया कि इस्लामिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथी शहीद हो गए थे। इसलिए इस दिन को शहादत के रूप में मनाते हैं।
