“बिरहा उत्सव : परंपरा और संस्कृति का संगगायकों ने बांधा समां”।

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Prayagraj: उत्तर मध्य क्षेत्र संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से आयोजित बिरहा उत्सव के आखिरी दिन सोमवार को हंडिया, प्रयागराज में बिरहा उत्सव के समापन हुआ, जिसमें स्थानीय लोक कलाकारों ने एक से बढ़कर एक पारंपरिक गीत प्रस्तुत कर वीरता, सामाजिक न्याय, प्रेम, और भारतीय संस्कृति की गहराइयों को उजागर किया।

कार्यक्रम की शुरुआत इंद्रवीर सिहं यादव ने किया उन्होंने देवी गीत आवा आवा मोर मयरिया धीरे धीरे ना तथा साछरता गीत भले लूट लेय कोई, अनधन रतनवां,ग्यान धन रतनवां केहू लूटे ना को पेश कर मंच को सजाया। इसके बाद सियाराम यादव एवं दल ने शिव पार्वती के पौराणिक कथा को बिरहा के बोल में पिरोकर श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत कर पूरे पंडाल को भक्तिमय कर दिया।

इसी क्रम में बरबुल्ले एवं दल ने दरोगा राधा बरनिया बनी, लहरे मर्द भेष में बृज के…. व ठननवां ठानी गिरिजा रनियां बोली पार्वती शिवशंकर के समनवां एवं आफतिया सर पे भारी आ गईल मन में सोचे मुनिवर कईसे टरी विपत्तिया को प्रस्तुत किया। अरविंद यादव एवं दल ने हसंवा उड़ाके तबले आ गईली माई हो तथा राम केवट संवाद को बिरहा के माध्यम से प्रस्तुत कर श्रोताओं को भाव विभोर किया। इस अवसर पर केंद्र के अधिकारी, कर्मचारी सहित काफी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे।

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Author: AT Samachar

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