टीएन शर्मा की रिपोर्ट
प्रयागराज। उ.प्र. राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय, UPRTOU प्रयागराज के मानविकी विद्याशाखा के तत्वावधान में शुक्रवार को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जयंती पर लोक मंगल की अवधारणा और रामचन्द्र शुक्ल विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता आचार्य योगेन्द्र प्रताप सिंह, इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, प्रयागराज ने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि शुक्ल जी ने काव्यशास्त्र और साहित्य सिद्धान्तों का गंभीर अध्ययन किया जो बाद में उनकी पुस्तक रस मीमांसा और चिंतामणि में सुचिंतित रूप में व्यक्त हुई। हिन्दी आलोचना को संस्कृत काव्यशास्त्र के प्रभाव से मुक्त कराने तथा हिन्दी का अपना व्यवस्थित शास्त्र निर्मित करने की दृष्टि से रस मीमांसा एक महत्वपूर्ण कृति है। ‘चिंतामणि‘ में उन्होंने मनोविकार संबंधी निबंधों के साथ-साथ साहित्य-सिद्धान्तों का भी विश्लेषण-मूल्यांकन किया।
प्रोफेसर सिंह ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने रस-मीमांसा में रस पर आधारित विस्तार पूर्वक चर्चा की है। इसी प्रकार से उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास की व्यवहारिक व्याख्यात्मक आलोचना तथा जायसी ग्रन्थावली तथा भ्रमरगीत सार की भूमिकाओं में क्रमशः जायसी और सूरदास के काव्य पक्ष का सुन्दर वर्णन किया है। आचार्य रामचन्द्र मूल रूप से रस वादी आलोचक माने जाते हैं। उन्होंने लोक मंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोक मंगल की भावना साधारणीकरण से जुड़ी हुई है। जिसका आशय ऐसे साहित्य का सृजन है जो साधारण जनमानस की पहुँच तक हो।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते कुलपति आचार्य सत्यकाम ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपनी रचनाओं में साहित्य के मार्मिक अंशों को प्रस्तुत किया है। लोक मंगलकारी से संबंधित भाव उन्होंने रामचरित मानस का आधार बना कर किया। प्रोफेसर सत्यकाम ने कहा कि आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की कृतियां केवल साहित्य के लिए उपादेय नहीं है बल्कि सभी विधाओं के लिए है। उनकी रचनाओं को सभी को पढ़ना चाहिए। साहित्य एक ऐसी विधा है जो मनुष्य को मनुष्यता से जोड़ती है। उन्होंने कहा कि साहित्य वैज्ञानिकता से परे है। उन्होंने विज्ञान के छात्रों को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित किया। जिससे मानवीय मूल्यों का संवर्धन हो सके।
कार्यक्रम की संयोजक प्रोफेसर रुचि बाजपेई ने आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की जीवनी पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रामचन्द्र शुक्ल हिंदी के अत्यंत समादृत लेखक और आलोचक हैं। डॉ. रामविलास शर्मा उन्हें आलोचना के क्षेत्र में उतने ही महत्व से रखते हैं, जो महत्व प्रेमचंद का उपन्यास में है और निराला का कविता में।
कार्यक्रम के समन्वयक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी ने अतिथियों का वाचिक स्वागत किया। उन्होंने कहा कि रामचन्द्र शुक्ल द्वारा प्रयुक्त लोकमंगल शब्द का आधार रामचरित मानस ही है। शुक्ल जी की लोक मंगल की अवधारणा का संबंध जीवन के प्रयत्न पक्ष से जोड़ा है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अब्दुर्ररहमान फैसल ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. साधना श्रीवास्तव ने किया। इस अवसर पर निदेशक, आचार्यगण, शोधार्थी एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।